हेलो दोस्तों आज मैं आपको एक ऐसी सजा के बारे में बताने जा रहा हूं। जिसे सुनकर आपकी रूह कांप जाएगी डर से आपके रोंगटे और सर से पसीने निकल आएंगे। जी हां मैं बात कर रहा हूं काला पानी की सजा अंग्रेजों द्वारा की गई क्रूरता | Kala Pani Jail History In Hindi यह एक ऐसी सजा है जिसकी कल्पना हमने और आपने कभी नहीं की होगी जिसकी चर्चा देश और विदेश में आज तक फैली हुई है और यह सजा हमारे भारतवर्ष के वीर स्वतंत्रता सेनानी को भुगतनी पड़ी है सिर्फ और सिर्फ देश की आजादी के लिए।
काला पानी की सजा :-

जी हां हम बात कर रहे हैं “सजा ए कालापानी” की यह सजा अपने समय की सबसे क्रूर सजा मानी जाती थी। यह सजा अंग्रेजों द्वारा भारत की आजादी में लड़ रहे वीर स्वतंत्रता सेनानी को दी जाती थी बहुत सारे वीरों ने इस सजा को हंसते-हंसते अपनी मातृभूमि की आजादी के लिए काट लिया।
सन 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजी को यह पता चल गया था की उनकी हुकूमत भारत के ऊपर अब ज्यादा दिन तक और नहीं चलने वाली थी इसलिए 1857 के विद्रोह के बाद से पकड़े गए वीर स्वतंत्रता सेनानी को तड़पाने के लिए और उनके दिमाग से आजादी का ख्याल मिटाने के लिए अंग्रेजों ने भारत से हजारों किलोमीटर दूर समुद्र से घिरा हुआ आईलैंड जिसे आज हम “अंडमान निकोबार” के नाम से जानते हैं।

वहां भेज दिया और उन कैदियों को कोड़े मार-मार कर उनसे एक जेल बनवाई जिसे अंग्रेजों ने “सेल्यूलर जेल” का नाम दिया मगर भारतीय इतिहास में इससे “काला पानी की सजा” के नाम से जाना गया क्योंकि यह एकमात्र ऐसा जेल था। जो भारत से हजारों किलोमीटर दूर समुद्र से गिरे हुए आईलैंड अंडमान निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर के तट पर बनाया गया था और इस जेल को धरती का नरक भी कहा जाता है।
यहां मिलने वाली उत्पीड़न कैदियों के लिए किसी मौत से कम नहीं थी।

अंग्रेजों द्वारा की गई अंधेरी और काली घटना की शुरुआत
सेल्यूलर जेल का निर्माण सन 1896 में शुरू किया गया था और यह जेल 1906 के आखिर तक बनकर पूरी तरह से तैयार हो गया। यह जेल आम कैदियों के लिए नहीं बनाया गया था। इस जेल में वैसे कैदियों को भेजा जा रहा था। जिनके दिलों दिमाग में आजादी के लिए और अपने राष्ट्र के लिए देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। सेल्यूलर जेल में कुल ‘696 सेल’ थे। हर एक सेल का साइज 4.5 मीटर x 2.7 मीटर रखा गया था और सारे सेल एक अनंत काल अंधेरी कालकोठरी जैसी थी।
काला पानी की सजा अंग्रेजों द्वारा की गई क्रूरता | Kala Pani Jail History In Hindi

उसमें कहीं से रोशनी आने की कोई संभावना नहीं थी और 3 मीटर की ऊंचाई पर एक खिड़की लगी हुई थी। जो दूसरी और के कैदी की पीड़ा को सुनाती थी जानबूझ कर अंग्रेजों ने इतना छोटा सेल बनवाया था। इतने छोटे से सेल में ना तो कोई कैदी अच्छे से सो सकता था और ना ही दो कदम चल सकता था।
सेल्यूलर जेल में आए हुए सभी कैदियों को अलग-अलग सेल में रखा गया था। जिससे वे अकेले रहें और भागने के बारे में कोई षड्यंत्र ना करें और सेल्यूलर जेल को भी इस ढंग से,इस तरीके से बनाया गया था की कोई कैदी इस जेल से भाग ना पाए अंग्रेजों ने सेल्यूलर जेल की संरचना दो सिद्धांतों की मदद से की पहला “SPOKES OF A WHEEL” यह एक ऐसा सिद्धांत है।

जिसमें साइकिल के पहिए जैसी बनावट जेल की होगी जिसके चलते अगर कोई कैदी सेल्यूलर जेल की सेल को तोड़कर भागने की कोशिश करें तो वह कंफ्यूज हो जाए कि बाहर जाने का रास्ता किस और से है और दूसरा “PANOPTICON THEORY” इस सिद्धांत में यह था कि सेल्यूलर जेल के ठीक बीचो-बीच एक लंबा सा टावर लगाया जाए। जिस टावर से चारों और के नजारे आराम से दिख जाए।
सेल्यूलर जेल में कुल 7 शाखाएं थी प्रत्येक शाखाएं 3 मंजिला थी और बीचो-बीच टावर के ऊपर एक बड़ा सा घंटी लगाई गई थी। जिसे किसी भी आपातकालीन स्थिति में बजाकर अंग्रेज अपने सैनिकों को सूचित कर सकते थे। इस जेल में क्रांतिकारी कैदियों से रोजाना 30 पाउंड नारियल से तेल निकालने का कार्य दिया जाता था

कार्य न पूरा करने पर उन्हें जंजीरों से लटका कर उन पर बेहिसाब कोड़े बरसाए जाते थे कोड़े तब तक मारे जाते थे। जब तक कि कैदी बेहोश ना हो जाए। होश में आने के बाद उन्हें तब तक भूखा रखा जाता था। जब तक कि वह कार्य करने के लिए अपनी मंजूरी ना दे देते।

उन्हें खाने में घास से बनी हुई रोटी और गंदा पानी पीने को देते थे और उन्हें शौचालय जैसी चीज भी उन्हें अपनी सेल में ही करने पर विवश होना पड़ता था।
क्या में आप से बोलूं कि शौचालय के ऊपर आप सो सकते हो ?? इसका उत्तर जरूर “नहीं” होगा।
इस तरह की उत्पीड़न हमारे वीर स्वतंत्रता सेनानी रोज भुगत रहे थे। उन वीरों में प्रमुख नाम:- दीवान सिंह,बटुकेश्वर दत्त,बाबूराव सावरकर,सोहन सिंह,विनायक दामोदर सावरकर,मौलाना अहमदउल्ला,वमन राव जोशी,सोहन सिंह,योगेंद्र शुक्ला जैसे कई वीरों ने “सजा ए कालापानी” को हंसते-हंसते काट लिया।
सन 1942 में आखिरकार स्वतंत्रता सेनानी पर किए गए उत्पीड़न का हिसाब अंग्रेजों को देना पड़ा। जब सुभाष चंद्र बोस ने जापान की सरकार के साथ मिलकर अंडमान निकोबार पर हमला बोल दिया। इस हमले में अंग्रेजों की पूरी सेना को मारी गई। जो अंग्रेजी सेना बच गई उन्हें उसी जेल में उसी प्रकार से कैदी बना लिया गया।
जिस प्रकार से वे भारतीय वीर स्वतंत्रता सेनानियों को कैदी बना कर रखी हुई थी। अंग्रेजी सेना को वही घास से बनी हुई रोटी खिलाई गई। जो रोटी वह रोज हमारे भारतीय भाइयों को देते थे। कई अंग्रेजी सेनाओं ने इस उत्पीड़न को बर्दाश्त नहीं कर पाय और वे खुदकुशी कर लिए।
साल 1969 में भारत सरकार ने सेल्यूलर जेल को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया।

आज की तारीख की बात करें तो आज भी अंडमान निकोबार में बनी हुई सेल्यूलर जेल मौजूद है और वह जेल हमारे वीर स्वतंत्रता सेनानी की साहस को आज भी बतलाती है। हमारे वीरों की स्मारक आज भी वहां मौजूद है। जिसे देखने के लिए रोजाना कई सारे लोग देश और विदेश से उस जेल में जाते है और उनके सामने अपना सर झुका कर उनके साहस को नमन करते हैं।
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