अक्षरधाम मंदिर पर बने State of Siege: Temple Attack फिल्म की असली सच्चाई।

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हाल ही में आए अक्षय खन्ना की फिल्म “State of Siege: Temple Attack” लोगों के बीच काफी लोकप्रिय और चर्चा का विषय बना हुआ है। आज हम आपको क्या है अक्षरधाम मंदिर पर बने State of Siege: Temple Attack फिल्म की असली सच्चाई इसके बारे में बताएंगे।

फिल्म में दिखाए गए स्टोरी एक सच्ची घटना से प्रेरित होकर बनाई गई है जिस-जिस ने भी यह फिल्म देखा वह 2002 में हुई घटना को याद करके अंदर से काफी ज्यादा देहल सा गए हैं। उनकी रूह तक कांप गई है कैसे मुस्लिम संगठन के आतंकवादियों ने अक्षरधाम मंदिर में घुसकर भगवान की पूजा करने आए लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग करके लगभग 33 लोगों को बड़े बेरहमी से मार दिया और करीब 88 लोगों को जख्मी कर दिया।

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क्या थी यह दिल दहला देने वाली घटना और इस आतंकी घटना को किस तरह से अंजाम दिया गया। इस घटना के पीछे किसका हाथ था और यह क्यों कराया गया?? इसके बारे में हम आज के पोस्ट में विस्तार से जानेंगे।

तारीख थी 24 सितंबर 2002 की शाम के 4:45 बज रहे थे। अक्षरधाम मंदिर पूजा करने आए श्रद्धालुओं से भरी हुई थी करीब 600 लोग उस वक्त अक्षरधाम मंदिर में पूजा प्रार्थना कर रहे थे। पूरे मंदिर मे आस्था और शांति का माहौल था तभी अक्षरधाम मंदिर के गेट नंबर 3 पर एक सफेद एंबेसडर कार ठीक गेट के सामने पर आकर रूकती है।

उसमें से दो लोग उतरते हैं। एक की उम्र 20 साल (अशरफ अली मोहम्मद फारुक) और दूसरे की उम्र 25 साल (मुर्तजा हाफिस यसीन) था। दोनों के कंधों पर भारी-भरकम बैग था और दोनों के हाथों में ऑटोमेटिक से लैस बंदूकें थी। हाथों में हथियार लेकर वे गेट नंबर 3 के प्रवेश द्वार की ओर आगे बढ़ने लगे। गेट पर तैनात सिक्योरिटी गार्ड की नजर जैसे ही उन पर पड़ी जैसे ही वे कुछ समझ पाते। इतने में आतंकवादियों के तरफ से अंधाधुंध फायरिंग होना शुरू हो गया।

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कुछ ही सेकंड में अक्षरधाम मंदिर के अंदर गोलियों की आवाज से लोगों के बीच अफरातफरी मच गई। आतंकवादियों ने सिक्योरिटी गार्ड को बड़े बेरहमी से मारने के बाद अंदर दाखिल हो गए और गेट नंबर 3 को आतंकवादियों ने अंदर से बंद कर लिया और मंदिर परिषद में जहां भी लोग दिख रहे थे। अंधाधुन लोगों पर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया। इस गोलीबारी में अनेक श्रद्धालु मारे गए।

एक जख्मी हुए पुजारी जिन्हें बाद में उपचार के बाद बचा लिया गया वे बताते हैं कि जब उनको गोली लगी और वह जमीन पर गिर गए तब ठीक उनके सामने दो छोटे-छोटे बच्चे थे जिनका नाम प्रिया (3 साल) और भैलू (4 साल ) था। उनकी मां (सुमित्रा) आतंकवादियों के सामने हाथ जोड़कर अपने छोटे-छोटे बच्चों की जिंदगी की भीख मांग रही थी मगर आतंकवादियों ने उनकी एक न सुनी और उनके आंखों के सामने मां और दो छोटे-छोटे बच्चे को मार दिया।

अक्षरधाम मंदिर पर बने State of Siege: Temple Attack फिल्म की असली सच्चाई।

3 मिनट के बाद 4:48 बजे को उस वक्त के तत्कालीन मुख्यमंत्री “नरेंद्र मोदी” को सूचित किया गया की अक्षरधाम मंदिर पर आतंकवादियों ने हमला कर दिया। ज्यादा समय ना गवाते हुए नरेंद्र मोदी ने तुरंत गांधीनगर के जिला पुलिस प्रमुख “आर बी ब्रह्मभट्ट” को अक्षरधाम मंदिर के लिए रवाना कर दिया तब तक आतंकवादियों ने कई सारे लोगों को मार दिया। एग्जिबिशन हॉल में अभी भी बहुत सारे लोग फंसे हुए थे।

5:15 को तत्कालीन मुख्यमंत्री “नरेंद्र मोदी” की बात उप प्रधान मंत्री “लालकृष्ण आडवाणी” से होती है।

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वे दिल्ली में फोन करके एनएसजी कमांडो (नेशनल सिक्योरिटी गार्ड) की मांग करते हैं इधर में जिला पुलिस प्रमुख “आर बी ब्रह्मभट्ट” घटनास्थल पर पहुंचकर किसी तरह अक्षरधाम मंदिर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं और जितने भी लोग जख्मी रहते हैं। उन्हें तत्काल तुरंत अस्पताल के लिए रवाना कर देते हैं जैसे ही पुलिस अंदर जाने की कोशिश करती है वैसे ही अक्षरधाम मंदिर के सबसे ऊपर चढ़े आतंकवादि पुलिस पर अंधाधुंध फायरिंग करना शुरू कर देता है मगर राहत की बात यह होती है कि इस फायरिंग में किसी की भी जान नहीं जाती है दोनों तरफ से लगातार गोलीबारी होती रहती है।

एनएसजी कमांडो को आते-आते रात के 10:10 बज जाते हैं। दो गाड़ी भरकर एनएसजी कमांडो घटनास्थल अक्षरधाम मंदिर के पास पहुंचते हैं मगर एनएसजी कमांडो का मकसद सिर्फ उन आतंकवादियों को मारना नहीं था बल्कि एग्जिबिशन हॉल में फंसे लोगों को बचाना भी था इसलिए वे हर प्रकार की रणनीति के ऊपर विचार विमर्श कर रहे थे। फंसे लोगों को सही सलामत एग्जिबिशन हॉल से कैसे निकाला जाए?? रणनीति बनाते बनाते रात के करीब 11:30 बज चुके थे।

रणनीति बनते ही 35 एनएसजी कमांडो ने पूरी अक्षरधाम मंदिर को चारों तरफ से घेर लिया धीरे-धीरे करके वे अंदर जाने लगे मगर आधी रात हो जाने के कारण आतंकवादियों को ढूंढना थोड़ा असंभव सा काम लग रहा था और आतंकवादी भी रात के अंधेरे का फायदा उठाकर जगह बदल-बदल कर एनएसजी कमांडो पर फायरिंग करने लगे जिसके उपरांत एक एनएसजी कमांडो और दो पुलिस कर्मी शहीद हो गए जबकि एक एनएसजी कमांडो “सुरजन सिंह भंडारी” के सिर में गोली लगने की वजह से वे 2 साल तक करीब कोमा में रहे और 2004 में वह शहीद हो गए। इसके बाद एनएसजी कमांडो ने फैसला किया सुबह होने का इंतजार करेंगे उसके बाद ही किसी प्रकार की जवाबी कार्रवाई करेंगे।

25 सितंबर 2002 सुबह के करीब 6:45 बजे को एनएसजी कमांडो की पूरी टीम अक्षरधाम मंदिर के अंदर घुसी एक-एक करके हर एक कमरे में आतंकवादियों को ढूंढने लगी। 14 घंटे तक चले मौत का तमाशा आखिर एनएसजी कमांडो ने खत्म कर दिया। जब वह आतंकवादियों को ढूंढते ढूंढते अक्षरधाम मंदिर के पीछे पेड़ों के पास पहुंची तो वह दोनों आतंकवादी पेड़ के पीछे छुपे हुए थे।

एनएसजी कमांडो को देखते ही आतंकवादियों ने उन पर गोलियां चलाना शुरू कर दिया। एनएसजी कमांडो ने बड़ी बहादुरी से दोनों आतंकवादियों को मौत के घाट उतार दिया और अक्षरधाम मंदिर में पुनः शांति का माहौल स्थापित कर दिया। यह दिल दहला देने वाली घटना में करीब 33 लोगों की मौत और 80 लोग घायल हुए।

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यह आतंकी हमला क्यों कराया गया?? इस घटना के पीछे किसका हाथ था।

ब्रिगेडियर राज सीतापति ने जांच में पाया कि इस आतंकी हमले के पीछे पाकिस्तान के लाहौर मुस्लिम आतंकी संगठन “तहरीक-ए-कसासो” का हाथ था। एनएसजी कमांडो द्वारा मारे गए दोनों आतंकवादियों के जेब से एक उर्दू में लिखा हुआ पत्र मिला। जिसमें लिखा हुआ था “गुजरात में हुए गोधरा कांड (27 फरवरी 2002) का बदला लिया गया है” इस आतंकी हमले के बाद से अक्षरधाम मंदिर में सीसीटीवी एवं बड़े-बड़े मेटल डिटेक्टर मशीनें और सीआरपीएफ के जवान 24*7 तैनात कर दिए गए हैं।

इस तरह का आतंकी हमला भविष्य में दोबारा ना हो इसलिए अक्षरधाम मंदिर कि परिसर में कड़ी पाबंदी लगा दी गई है। नवंबर 2017 को “तहरीक-ए-कसासो” मुस्लिम आतंकी संगठन का मास्टरमाइंड जिसने अक्षरधाम मंदिर के ऊपर आतंकी हमले करने का षड्यंत्र रचा था। उसे अहमदाबाद एयरपोर्ट से क्राइम ब्रांच की टीम ने गिरफ्तार कर लिया करीब 15 साल से फरार चल रहे “मोहम्मद फारूख” को आखिरकार क्राइम ब्रांच ने पकड़ ही लिया।

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